World history – PYQs – Mains

2024

यह कहना कहाँ तक सही है कि प्रथम विश्व युद्ध मूलतः शक्ति संतुलन कोv बनाए रखने के लिए लड़ा गया था?

परिचय
पहला विश्व युद्ध जुलाई 1914 से नवंबर 1918 तक चला। यह युद्ध दो बड़े गुटों के बीच हुआ। एक तरफ थे मित्र राष्ट्र, जिनमें फ्रांस, रूस और ब्रिटेन शामिल थे। दूसरी तरफ थे केंद्रीय शक्तियाँ, जिनमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली शामिल थे। लोग कहते हैं कि यह युद्ध यूरोप में ताकत का संतुलन बनाए रखने के लिए लड़ा गया था, लेकिन इसके पीछे और भी कई कारण थे।

ताकत का संतुलन
यूरोपीय देश एक-दूसरे की ताकत को संतुलित करने के लिए गठबंधन बना रहे थे। फ्रांस, रूस और ब्रिटेन ने मिलकर एक समूह बनाया जिसे ट्रिपल एंटेंट कहा गया। इसके जवाब में जर्मनी, ऑस्ट्रिया-हंगरी और इटली ने ट्रिपल एलायंस बनाया। इन गठबंधनों का मकसद यह था कि कोई भी देश बहुत ज़्यादा ताकतवर न हो जाए, लेकिन इससे तनाव और बढ़ गया।

जर्मनी की बढ़ती ताकत
जर्मनी बहुत तेज़ी से तरक्की कर रहा था। उसकी इंडस्ट्री और सेना दोनों तेज़ी से बढ़ रही थीं। बाकी देशों को यह डर था कि कहीं जर्मनी बहुत शक्तिशाली न बन जाए। जब युद्ध खत्म हुआ तो विजेता देशों ने जर्मनी को कमजोर कर दिया और फ्रांस को मजबूत किया।

पुराने साम्राज्यों का कमजोर होना
उस समय ऑटोमन साम्राज्य और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य धीरे-धीरे कमजोर हो रहे थे। इससे यूरोप में सत्ता का खालीपन और अस्थिरता आ गई। कई छोटे-छोटे इलाकों में लोगों में आज़ादी की भावना जागने लगी थी।

साम्राज्यवाद
युद्ध से पहले यूरोपीय देश अफ्रीका और एशिया के कई इलाकों पर कब्जा करना चाहते थे। वे वहां के कच्चे माल और बाजारों पर नियंत्रण चाहते थे। इस वजह से उनमें आपस में झगड़े बढ़ने लगे। ये झगड़े भी युद्ध की एक बड़ी वजह बने।

सेना और हथियारों की होड़
1914 तक ब्रिटेन और जर्मनी ने अपने हथियार और नौसेना बहुत बढ़ा ली थी। हर देश को लगने लगा था कि ज़्यादा सेना और हथियार होना ही ताकत है। जर्मनी ने जब रूस की सीमा की तरफ अपनी सेना भेजी तो रूस को यह खतरा लगा और वह भी युद्ध के लिए तैयार हो गया।

राष्ट्रवाद
उस समय यूरोप में राष्ट्रवाद की भावना बहुत तेज़ हो गई थी। लोग अपनी जाति, भाषा या संस्कृति के आधार पर अलग देश बनाना चाहते थे। जैसे, बोस्निया और हर्जेगोविना के स्लाव लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी में नहीं रहना चाहते थे, वे सर्बिया के साथ जुड़ना चाहते थे। इससे भी तनाव बढ़ा।

निष्कर्ष
पहला विश्व युद्ध कई कारणों से हुआ। ताकत का संतुलन एक महत्वपूर्ण कारण था, लेकिन यह अकेला कारण नहीं था। राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, आर्थिक प्रतिस्पर्धा, और सेना बढ़ाने की होड़ ने भी इस युद्ध को भड़काने में बड़ी भूमिका निभाई।

2024

इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति भारत में हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों के पतन के लिए किस हद तक जिम्मेदार थी?

परिचय
औद्योगिक क्रांति की शुरुआत 18वीं शताब्दी के अंत में ब्रिटेन में हुई। यह वह समय था जब मशीनों से उत्पादन शुरू हुआ, भाप से चलने वाले इंजन और कारखाने बने, और वस्तुओं का बड़े पैमाने पर निर्माण होने लगा। ब्रिटेन की उपनिवेशित कॉलोनियाँ (जैसे भारत) कच्चे माल का स्रोत (जैसे कपास, नील आदि) भी थीं और तैयार माल के बाज़ार भी।

औद्योगिक क्रांति और हस्तशिल्प तथा कुटीर उद्योग का पतन

हाथ से बनी बनाम मशीन से बनी वस्तुएं
जब मशीनों से बनी चीजें सस्ती और बड़ी मात्रा में बाजार में आईं, तो भारत की महंगी और हाथ से बनी चीजें मुकाबला नहीं कर पाईं। इससे भारतीय हस्तशिल्प को भारी नुकसान हुआ।

भेदभावपूर्ण नीतियाँ
ब्रिटिश सरकार ने एकतरफा नीतियाँ लागू कीं। भारत से ब्रिटेन भेजे जाने वाले सामान पर भारी टैक्स लगाए गए, लेकिन ब्रिटेन से भारत आने वाले सस्ते सामान पर बहुत कम टैक्स लगते थे। इससे ब्रिटिश सामान भारत में भर गया और भारतीय वस्तुएं बिकना बंद हो गईं।

बेरोजगारी और कृषि की ओर झुकाव
स्थानीय बाजार के टूटने से कारीगरों का रोजगार छिन गया। उन्हें शासकों और अमीरों से मिलने वाला समर्थन भी खत्म हो गया। मजबूरी में इन लोगों ने अपने हुनर को छोड़कर खेती या मजदूरी जैसे काम करने शुरू कर दिए।

शोषणकारी खेती
जिनके पास ज़मीन थी, उन्हें ज़बरदस्ती कुछ खास फसलें उगाने को कहा गया जो ब्रिटिश उद्योगों के लिए जरूरी थीं। उदाहरण के लिए – नील की खेती। यह किसानों के लिए नुकसानदायक था।

नई सोच और रचनात्मकता में गिरावट
जब मशीन से बनी सस्ती चीजें बाजार में आने लगीं तो लोगों ने हाथ से बनी चीजें खरीदनी बंद कर दीं। इससे कारीगरों का उत्पादन घटा, उनकी आमदनी घटी और वे कुछ नया या बेहतर बनाने की स्थिति में नहीं रहे।

भारतीय दृष्टिकोण

धन का बहाव (ड्रेन ऑफ वेल्थ)
दादा भाई नैरोजी ने कहा कि ब्रिटिश शासन ने भारत का धन लूट लिया, जिससे यहां का औद्योगिक विकास रुक गया।

स्वदेशी आंदोलन
महात्मा गांधी ने कहा कि ब्रिटिश उद्योगों की चमक भारतीयों की रोज़ी-रोटी छीन कर आई है। उन्होंने लोगों से विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुएं अपनाने की अपील की।

जवाहरलाल नेहरू का विचार
अपनी किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में नेहरू ने कहा कि ब्रिटिश नीतियों ने भारत को एक औद्योगिक देश से केवल कच्चा माल देने वाला देश बना दिया।

निष्कर्ष
औद्योगिक क्रांति ने भारतीय समाज को गहराई तक नुकसान पहुंचाया। लेकिन भारत के संविधान निर्माताओं ने इस बात को समझा और इसीलिए अनुच्छेद 43 में साफ कहा गया है कि भारत को कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना चाहिए।